SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द. २२ ( ११ ) सम्यक् स्मृति भिक्षुओ, सम्यक् स्मृति क्या है ? भिक्षुओ, एक भिक्षु काय (शरीर) के प्रति जागरूक (कायानु पश्यी) है। वह प्रयत्नशील, ज्ञानयुक्त, (होग वाला) तथा लोक मे जो लोभ और दौर्मनस्य है उसे हटाकर विहरता है, वेदनाओ के प्रति जागरूक चित्त के प्रति जागरूक और धर्म (मन के विपयो) के प्रति जागरूक, प्रयत्नवाला, ज्ञानयुक्त, होगवाला तथा लोक मे जो लोभ ओर दोर्मनस्य है उसे हटा कर विहरता है । भिक्षुओ, प्राणियो की विशुद्धि के लिए, शोक तथा कष्ट के उपशमन के लिए, दुक्ख तथा दौर्मनस्य के नाश के लिए, ज्ञान की प्राप्ति के लिए, निर्वाण के साक्षात् करने के लिए यह चारो प्रकार का स्मृति - उपस्थान ( सतिपट्ठान ) ही एक मात्र मार्ग है । भिक्षुओ, भिक्षु कैसे काया मे जागरूक ( = कायानुपश्यी ) हो विहरता है ?-- भिक्षुओ, भिक्षु अरण्य मे, वृक्ष के नीचे, एकान्त घर मे, आसन मार कर, शरीर को सीधा कर, स्मृति को सामने कर बैठता है । वह जानता हुआ साँस लेता है, जानता हुआ सॉस छोड़ता है। लम्बी साँस लेते हुए वह अनुभव करता है कि लम्बी साँस ले रहा हूँ । लम्बी सॉस छोडते हुए अनुभव करता है कि लम्बी साँस छोड रहा हूँ । छोटी साँस लेते हुए अनुभव करता है कि छोटी सॉस ले रहा हूँ। छोटी सॉस छोडते हुए अनुभव करता है कि छोटी साँस छोड रहा हूँ । सारी काया को अनुभव करते हुए सॉस लेना सीखता है । सारी काया को अनुभव करते हुए साँस
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy