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________________ द्वेष आदि अकुशल पाप-मय स्याल घर न कर ले। उन पापमय ख्यालो को दूर रखने के लिए प्रयत्न करता है, अपनी आँख को काबू मे रखता है, अपनी आँख पर सयम रखता है। वह अपने कान से सुन्दर शब्द सुनता है नासिका से सुगन्धि मूंघता है, जिह्वा से रस चखता है शरीर से स्पर्श करता है नन से सोचता है अपने मन को काबू मे रखता है, अपने मन पर सयम रखता है। भिक्षुओ, इसे सयम-प्रयत्न कहते है। ओर भिक्षुओ, प्रहाण-प्रयत्न किसे कहते है ? एक भिक्षु प्रयत्न करता है, जोर लगाता है, मन को काबू मे रखता है कि ऐसे अकुशल पापमय-स्याल जो उसके मन मे पैदा हो गए है, वह दूर हो जाएँ। उसके मन में जो काम भोग की इच्छा उत्पन्न हुई है, जो क्रोव उत्पन्न हुआ है, जो हिसक विचार उत्पन्न हुआ है, वह ऐसे सभी अकुगल पापमय विचारो को जगह नहीं देता, छोड देता है, नप्ट कर देता है, मिटा देता है। म. २० भिक्षुओ, योग-अभ्यासी भिक्षु को समय समय पर पाँच वातो को मन मे स्थान देना चाहिये - १-भिक्षुओ, (यदि) किसी भिक्षु को किसी वात पर विचार करने से, किमी चीज को मन मे जगह देने से तृष्णा-ट्रेप तया मूढता से भरे हुए अकुगल पापमय विचार पैदा हो, तो उस भिक्षु को चाहिये कि उस बात को छोड कर दूसरी शुभ-विचार पैदा करने वाली वात वा चीज को मन में स्थान दे। २-अयवा उन पापमय विचारो के दुष्परिणाम को सोचे कि "यह (अवाछित) वितर्क अकुशल है, यह वितर्क सदोप है, यह वितर्क दुख देने वाले है।" ३-अथवा उन वितर्को को मन मे जगह न दे। ४- अयवा उन वितर्कों का सस्कार-स्वरूप होना सोचे। ५-अयवा दाँतो पर दॉत रख कर, जिह्वा को तालु मे लगा कर अपने
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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