SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ३१ - के बन्धन से बँधे है, वह जहाँ तहाँ आसक्त होत है और इस प्रकार उनको बार बार जन्म लेना पडता है। भिक्षुओ, जो कर्म लोभ का परिणाम है, लोभ के कारण किया गया है, अ. ३३३ लोभ से उत्पन्न हुआ है, जहाँ जहाँ जन्म होता है, वह कर्म वही वही पकता है। भिक्षुओ, जो कर्म द्वेप का परिणाम है, द्वेष के कारण किया गया है, उप से उत्पन्न हुआ है, जहाँ जहाँ जन्म होता है, वह कर्म वही वही पकता है। भिक्षुओ, जो कर्म मूढता का परिणाम है, मूढता के कारण किया गया है, -मूढता से उत्पन्न हुआ है, जहाँ जहाँ जन्म होता है वह कर्म वही वही पकता है। जहाँ वह कर्म पकता है वहाँ उस कर्म का फल-भुगतना होता है, इसी जन्म मे वा किसी दूसरे जन्म मे। भिक्षओ, अविद्या के नाश और विद्या के उत्पन्न होने से, तप्णा के निरोध म ४३ होने पर पुनर्जन्म नहीं होता। जो अलोभ का परिणाम है, अलोभ के कारण किया गया है, अलोभ से उत्पन्न हुआ है, जो अक्रोध का परिणाम है, अ ३१३३ अक्रोव के कारण किया गया है, अक्रोव से उत्पन्न हुआ है, जो अमूढता का परिणाम है, अमूढता के कारण किया गया है, अमूढता से उत्पन्न हुआ है, वह कर्म लोभ, क्रोध, मूढता के नहीं रहने से नाश हो जाता है, जड से उखड जाता है, सिर कटे ताड जैसा हो जाता है, नहीं रहता, फिर उत्पन्न नही होता है। ___ यह जो लोग कहते है कि "श्रमण गौतम उच्छेदवादी है, उच्छेदवाद म २ का उपदेश करता है, शिण्यो को उच्छेदवाद की शिक्षा देता है" यदि वह उक्त अर्थो मे कहते है, तो वह ठीक कहते है। भिक्षुओ, मै राग, द्वेप, मोह तथा अनेक प्रकार के पाप-कर्मों के उच्छेद का उपदेश करता हूँ।
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy