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________________ ऑसू, चर्वी, थूक, सीढ, कोहनी आदि जोडो मे स्थित तरल पदार्थ तथा मूत्र-और भी जो प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर जलीय है, बहने वाला है, तरल पदार्थ है, उसे अन्दस्नी जल-धातु कहते है। यह जो अन्दरूनी जल-धातु है तथा यह जो वाहरी जल-धातु है-यह सव जल-धातु ही है। भिक्षुओअग्नि-धातु किसे कहते है ? अग्नि-धातु दो प्रकार की हो सक्ती है -अन्दरूनी अग्नि-धातु तथा बाहरी अग्नि-धातु। अन्दरूनी अग्नि-धातु किसे कहते है ? यह जो प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर अग्निमय है, गर्मी है, जैसे-जिससे तपता है, जिससे पचता है, जिससे जलता है, जिससे खाया पिया भली प्रकार हजम होता है और भी जो प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर अग्नि-स्प है, गर्मी है, उसे अग्नि-धातु कहते है। यह जो अन्दरूनी अग्नि-धातु है तथा यह जो बाहरी अग्नि-धातु है-यह सव अग्निधातु ही है। भिक्षुओ। वायु-धातु किसे कहते है ? वायु-धातु दो प्रकार की हो सकती है --अन्दरूनी वायु-धातु तथा वाहरी वायु-धातु । अन्दरूनी वायुधातु किसे कहते है? यह जो प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर वायु-रूप है, वायु है जैसे-ऊपर जाने वाली वायु, नीचे जाने वाली वायु, पेट मे रहने वाली वाय, कोष्ठ (कोठे) मे रहने वाली वायु, अङ्ग अङ्ग मे घूमने वाली वायु, आश्वास-प्रश्वास-और भी जो प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर वायु-रूप है, वायु है, उसे वायु-धातु कहते है। यह जो अन्दरूनी वायु-धातु है तथा यह जो बाहरी वायु-धातु है-यह सब वायु-धातु ही है। भिक्षुओ। जिस प्रकार काठ, वल्ली, तृण तया मिट्टी मिलकर 'आकाश' (=खला) को घेर लेते है और उसे घर कहते है, इसी प्रकार हड्डी, रगे, मॉस, तथा चर्म मिलकर आकाश को घेर लेते है और उसे 'रूप' कहते है। भिक्षुओ। अपनी आँख ठीक हो, लेकिन बाहर की वस्तुएं सामने न हो ओर न हो उनका सयोग, तो उससे उत्पन्न हो सकने वाले विज्ञान का प्रादुर्भाव नही होता। भिक्षुओ। अपनी ऑख ठीक हो, बाहर की वस्तुएं
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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