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________________ । है, उसका अमुक नाम है, अमुक गोत्र है,' अथवा वह कहे-'मै तब तक यह तीर नही निकलवाऊँगा, जब तक यह न जान लूं कि जिस आदमी ने मुझे यह तीर मारा है, वह लम्बा है, छोटा है वा मॅझले कद का है, तो हे भिक्षुओ उस आदमी को इन वातो का पता लगेगा ही नहीं, और वह यूं ही मर जाएगा।" (पृ० २३) जिस एक प्रश्न को बुद्ध ने उठाया और जिसका उत्तर दिया है, उसका सम्वन्ध न केवल सभी मनुष्यो से है, किन्तु सारे जीवो से, न केवल सभी देशो से है, बल्कि समस्त विश्व से, उसका सम्बन्ध अतीत से है, अनागत से है, वर्तमान से है। प्रश्न जितना सरल है, उससे अधिक व्यापक है। प्रश्न है, 'क्या हम दुखी है ?' बुद्ध का उत्तर है, 'हाँ'। क्या इस दुख से छूट सकते है ? बुद्ध का उत्तर है, 'हाँ'। प्राचीन और वर्तमान काल मे ऐसे मनुष्य रहे है और है जिनका मत है कि ससार मे पैदा हुए है तो उसमे अधिक से अधिक मजा उडाने की कोशिश होनी चाहिये। यही एक मात्र बुद्धिमानी है। इस 'बुद्धिमानी' मे और तो कोई दोप नहीं-दोप केवल इतना ही है कि अधिक से अधिक मजा उडाने को ही जीवन का परमार्थ वना लेने वालो के हिस्से मे आता है अधिक से अधिक दुख। प्रत्येक 'मजे' को वह दुगना करते है, इस आशा से कि उन्हे दुगना मजा आएगा। लेकिन होता क्या है ? आज शराब का एक प्याला नाकाफी मालूम देता है, कल दूसरा परसो तीसरा । एक दिन आता है • कि वह शराब को केवल इस लिए पीते है क्योकि वह विना पिये नही रह सकते। यही हाल ससार के सभी विपयो, सभी भोगो का है। थोडे ही समय मे विपयो के भोगने मे तो कोई मजा नही रहता ओर न भोगने मे होता है दुख, महान् दुख। कैसी दयनीय दशा होती है तब भोगो के पीछे अन्धे हो कर भागने वालो की ।।। ___कुछ लोगो का कहना है कि ससार तो मिथ्या है, है ही नहीं-रस्सी मे सर्प का भान है। इस मिथ्या-भान को छोड कर जो वास्तविक अस्तित्व
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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