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________________ "सतरहभेदी-पूजा मोगर वेउला मालती, हे पंच वरणे गुंथी मालती ए॥ हे माल जिन कंठ पीठे ठवी लहलहे, हे जाण सताप -सहु पालती ए ॥२॥ ॥ राग आशावरी ॥ देखी दामा कंठ जिन अधिक एधति नदे, चकोरकु देखि देखि जिम चंदे ॥ दे० १॥ पंचविध वरण रची कुसुमाकी जैसी रयणावलि सुहमदे ।। दे० ॥२॥ छट्ठी रे तोडर पूजा तव डर धूजे, सब अरिजन हुइ हुइ तिम छन्दे । दे० ॥३॥ कहे साधुकीरति सकल आशा सुख, भविक भगत जे जिण वदे ॥दे० ॥४॥ ॥ सप्तम वर्णपूजा ॥ ॥दोहा॥ केतकि चंपक केवड़ा, शोमे तेम सुगात । । 'चढो जिम चढता हुवे, सातमिये सुखशात ।। || राग केदारो गोडी ॥ . कुंकुम । चर्चित विविध पच वरणक, कुमुमप्त - हारे अ० ॥ कुद गुलापशु चंपको दमणको, - ॥१॥ सातमी पूजमे अगिए अग अलकिये।। रे वज आलंक मिश माननी, मुगति आलिंगिये ए ॥२२ कार पंच
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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