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________________ [ ६६ ] हर्ष धरी अप्सरा वृन्दे आवे, स्नात्रकरी एम आशीष भावे । जिहालगे सुरगिरि जंबुदोवो, अमतणा नाथ जीवाति जीवो॥२॥ ॥ अथ नवपद जी की आरती || जय जय जगजन वाँछित पूरण, सुरतरु अभिरामी । सुर० आतम रूप विमल कर तारक, अनुभव परिणामी ॥ जय० १ ॥ 1 + जय जय जय जग सारा, भविजन आधारा । भवि० आरति पार उतारा, सिद्धचक्र सुखकारा ॥ जय० २|| जगनायक जगगुरु जिण चदा, भज श्रीभगवंता । भज० आतम. राम रमा सुख भोगी, सिद्धा जगवता ॥ जय० ३ ॥ पंचाचार दिये आचारज, युगपर गुणधारी । युग० धारक वाचक सूत्र अरथना, पाठक भवतारी ॥ जय० ४ ॥ शम दम रूप सकल गुण धारक, मोटा मुनिराया । मोटा० दरिसण नाण सदा जयकारक, सजम तप भाया ॥ जय० ५|| नवपद सार परम गुरु भासे, सिद्धचक्र सुखकारी | सिद्ध० इह भव परभव ऋद्धिदायक, भन सायर वारी ॥ जय० ६ ॥ कर जोडी 'सेवक जस गावे, मनवाँछित पावे | मन० श्री जिनचन्द चरण परिपूजक, शिवकमला पावे ॥ जय० ७ ||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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