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________________ [ ४८ ] पचीशे गुणे युक्त देहा सुर्या, सदा वंदिये ते उपाध्याय पूर्या ॥२॥ नहीं सूरिपण सूरि गुणने सुहाया, नमुंवाचका त्यक्तमदमोह माया । वली द्वादशांगादि सूत्रार्थ दाने, जिके सावधाना निरुद्धामिमाने ॥३॥ घरे पंचनेवर्ग वर्गित गुणौधा, प्रवादि द्विपोच्छेदने तुल्य सिंघा ॥ गुणीगच्छ संधारणे स्तंभभूता, ___ उपाध्याय ते बंदिये चित् प्रभूता ॥४॥ ॥ ढाल उल्लालानी देशी॥ खंति जुआ मुत्ति जुआ, अज्जव मद्दव जुत्ताजी। सच्चं सोयं अकिंचरणा, तव संजम गुण रत्ताजी ॥ १ ॥ ॥ उलालो।। जे रम्या ब्रह्म सुगुत्ति गुत्ता, सुमति सुमता श्रुतधरा । स्याद्वादवादे तत्ववादक, आत्म पर भविजन करा ॥ भव भीरु साधन धीर शासन, वहन धोरी मुनिवरा । सिद्धांत वायण दान समरथ, नमो पाठक पद धरा ॥२॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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