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________________ [४७ ] मंत्र : ॐ ही अहं परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये, जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय, श्रीआचार्यपदे, पंचामृतं, चंदन-पुष्पं-धूप-दीपं अक्षतान्-नवेद्य-फलं-बल-वास यजामहे स्वाहा। ॥ अथ चतुर्थी उपाध्यायपद पूजा ॥ ॥दोहा॥ गुण अनेक जग जेहना, सुन्दर शोभित गान । उमज्माय पद अरचिये, अनुभव रसनो पात्र ॥१॥ ॥काव्यम् इन्द्रवजावृत्तम् ॥ सुत्नत्यवित्यारण तप्पराण, णमो णमो वायगजराणं । गणस्स संधारण सायराण, सबप्पणा वज्जिय मच्छराण १ ॥ भुजंगप्रयात वृत्तम् ॥ महास्य सिद्धान्त सुद्धे करीने, पढावे सुशिष्या अनुग्रह धरीने ॥ करे पूजना लोक मध्येत्वदीया, श्री जास शक्ति स्वकीया ॥२॥ गग सार शुद्ध सुहर्प करता, मुनिवर्ग मधे प्रमादो इरता।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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