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________________ (घ ) कर नाम कर्म उपार्जन किया है। जिन प्रतिमा के अवलम्बन को अस्वीकार करने वाला सम्यक्त्वी नहीं हो सकता और उसे तीन कालसें भी आत्म दर्शनकी सम्पूर्णता - मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती । जैन शास्त्रों में सम्यक ज्ञान क्रिया से मोक्ष बतलाया है । शुष्क ज्ञानी और क्रिया जड़ दोनों को ही मोक्ष मार्ग से दूर माना गया है । जिनेश्वरदेव से भक्ति के तार जोड़ना अवश्य कर्तव्य है, विभक्त रहने से मोक्ष मार्ग असम्भव है । अतः भव्यात्माओं को जिन भक्ति मार्ग के सुगम पथारूढ होने के लिए आगमों में पूजा विधि बतलाई है । आगम काल से प्राकृत भाषा का प्रचलन था अतः संस्कृत प्राकृत में पूजा पाठ प्रचलित थे । अपभ्रंश भाषा युग में उस भाषा में निर्माण हुआ है इधर चार-पांच शताब्दी से हिन्दी गुजराती राजस्थानी लादि लोक भाषा में प्रचुरता से एतद्विषयक पूजा साहित्य का निर्माण हुआ । इन पूजाओं में तत्वज्ञान इतिहास आचार संहिता और जितेन्द्र भक्ति सम्पूर्ण रूपेण आप्लावित हैं । शुष्क तत्वज्ञान आकलन करना दुरूह है, सूखे चावल अग्नि ताप से दग्ध हो जाएँगे पर भक्तिजल मिश्रित करने पर सिद्ध होंगे तभी तो श्रीमद्देवचन्द्रजी ने "कलश पानी मिसे भक्तिजल सींचता" वाक्यों द्वारा भक्ति भाव प्रवण पूजोपचार निर्दिष्ट किया है । विगत चार सौ वर्षों से विद्वानों ने लोकभाषा में विविध संगीतलय युक्त राग-रागनियों में व देशी ढालों में पूजा साहित्य का निर्माण करना प्रारंभ किया । उ० साधुकीर्तिजी की संतरह
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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