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________________ [ ३१ ] ॥ अथ अर्घ पूजा है ॥ । ' || ॐ नमोह सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' । ॥मलिनी छन्दः ॥ इति जिनवर वृन्दं, भक्तितः। पूजयन्ति । । सकल गुणनिधानं, देवचन्द्राः स्तुवन्ति ॥ प्रति दिवस मनन्तं, तत्समुद्भासयन्ति । परम सहज रूपं, मोक्ष सौख्य श्रयन्ति ॥६' मत्र-ॐ हों अर्हपरमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये, जन्म-जरा - मृत्यु निरिणाय, श्री मज्जिनेन्द्राय, अर्घ्य यजामहे स्वाहा। उपरोक्त काव्य तथा मन पढकर, प्रभु-प्रतिमा के बिगड़े के चारों कोनों में पानी की धारा देवे । ॥ अथ वस्त्र युगल पूजा १० ॥ वसन्ततिल्का छन्द' ।। ॥ ॐ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॥ शक्रोयथा जिनपतेः सुरशैल चूला। सिंहासनोपरि मितः स्नपनावसाने । दध्यक्षतः कुसुम चन्दन गन्ध धूपैः । कृत्वार्चन तु विदधाति सुवस्त्र पूजाम् ॥१॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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