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________________ अन्तराय कर्म निवारण पूजा ४७१ f से और वचन से, अन्तराप वह पावे रे || चन्दन० || ४ || कृपण कपीला दासी प्रातः, मुखदर्शन दुसयायी रे । नाम लियाँ रोटी रोजी में, हो जाता अन्तरायी रे || चन्दन० || ५ || अक्षय आवम गुण नहीं पावे, दान विधन करतारा रे । घाती करम अन्तराय निवारो, हो सुख अपरपारा रे || चन्दन० || ६ || प्रभुपद पूजा दान प्रसगे, अन्तराय कट जाता रे । सौभागी शुभनामी दानी, जग जिसका जग गाता रे || चन्दन० ॥ ७ ॥ आधि व्याधि उपाधि त्रिविध भव, पाप ताप नहीं होता रे । हरि कवीन्द्र प्रभु चन्दन पूजा, मिटे चार गति गोता रे || चन्दन० ॥ ८ ॥ ॥ काव्यम् ॥ पापोपताप शमनाय महद्गुणाय० । मन्त्र - ॐ दीं श्रीं अहं परमात्मने 'अन्तराय कर्म समृलोच्छेदाय श्रीपीर जिनेन्द्राय चन्दन यजामहे स्वाहा । ॥ तृतीय पुष्प पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ फूलों में रस हे भरा, फूलों भरी सुवास । फूलों से पूजो प्रभु, रस धासित हो सास ॥१॥ फूलों से कोमल अधिक, वज्र कठोर निशेष | अद्भुत जीवन फूल से, पूजो प्रभु हमेश ॥२॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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