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________________ [२१] जय जयो तू जिनराज जगगुरु, एम दे आशीष ए । अम्ह प्राण शरण आधार जीवन, एक तू जगदीश ए ॥४॥ || ढाल || सुर गिरिवर जी, पाँडुक वन में गिरि शिल पर जी, सिंहासन तिहाँ आणी जी, शक्रे जिन सोले ग्रथा । घउस े जी, तिहाँ सुरपति आवी रह्या ॥ ५॥ चिह्न दिशे । सासय वसे || ॥ हरिगीत [ त्रोटक ] छन्द ॥ आविया सुरपति सर्व भगते, कलश श्रेणी वणावए । सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ औषधि, सर्व वस्तु अणावए || अच्चय पति तिहाँ हुकम कीनो, देव कोडा कोड़ी ने । जिन मज्जनारथ नीर लावो, ससुर कर जोडी ने | ५|| | यहाँ पर हाथ में जल-कलश लेकर सड़ा रहे । ॥ ढाल ६ ॥ [ तर्ज - शान्ति ने कारणे इन्द्र कलशा भरे ] रसी, देवकोडी हसी । आत्मसाधन उल्लसी ने धसी, क्षीर सागर दिसी ||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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