SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२० ] सोहमपति जी, जिन जननी घर आविया । जिन माता जी, वन्दी स्वामी वधाविया ॥३॥ ॥ हरिगीत छन्द [त्रोटक ] धाविया जिनवर हर्ष बहुले, धन्य हूँ कृतपुण्य ए। त्रैलोक्यनायक देव दीठो, मुझसमो कुण अन्य ए॥ हे जगतजननी पुत्र तुमचो, मेरु मज्जन वर करी। उत्संग तुमचे क्लीय थापिश-आतमा पुण्ये भरी ॥३॥ . ॥ढाल॥ सुरनायक जी, जिन निज कर कमले ठव्या । पंच रूपे जी, अतिशय महिमाए स्तव्या ।। नाटक विधि जी, तब बत्तीस आगलवहे । 'सुर कोड़ी जी, जिन दर्शन ने ऊमहे ॥४॥ ॥ ढाल हरिगीत [त्रोटक ] छन्द ॥ . - सुर कोड़ा कोड़ी नाचती, वलि नाथ शचि गुण गावती । अप्सरा कोड़ी हाथ जोड़ी, हाव भाव दिखावती ॥ १-यहाँ पर प्रभु को कुसुमांजलि या अक्षतों से वधाना चाहिये। २- यहाँ प्रभु के सामने नाच करना चाहिये।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy