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________________ ४०८ वृहत् पूजा-संग्रह काय, ध्यान लय लाय रे || धू० ॥ ६ ॥ पुण्य सूत कात प्रभु पूज दिवस रात और कात, बन्ध हो सदैव सात । देव लोक में अशोक, कर न बात रे ॥ धू० ॥ ७ ॥ शाश्वत जिन धोक धोक । हरि कवीन्द्र लोक करें, कीर्ति थोक थोक रे || धू० ॥ ८ ॥ ॥ काव्यम् ॥ स्फूर्जन्सुगन्ध विधिनोर्ध्वगति प्रयाणैः० मन्त्र — ॐ ह्रीं अहं परमात्मने "वेदनीय कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा । ... || पंचम दीपक पूजा || ॥ दोहा ॥ जगदीपक परकाश में, पुण्य पाप का भेद । कर पाओ पाओ तभी, भेद रहे ना खेद ॥१॥ प्रभु सन्मुख दीपक धरो, भरो हृदय में जोत । अंधेरा मिट जायगा, होगा जग उद्योत || २ || (तर्ज - झण्डा ऊँचा रहे हमारा ) पूजो श्री जिन जय जयकारा, दीपक भाव भरो अविकारा || टेर || जग दीपक की ज्योति विचारा, भव सागर का मिला किनारा | झटपट होगा अव निसतारा
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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