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________________ JK PO T [* वेदनीय, कर्म, निवारण, पूजा ॥ चतुर्थ धूप पूजा ॥ दोहा ॥ ** * } खेवें . धूप- दशाङ्गको, हरे हृदय दुर्गन्ध । 1 3 ॥ *** $ Ts ร · ४०५ T : } 1 वायु मण्डल शुद्धिसे, भगे पापं प्रतिबन्ध ॥ १ ॥ 164 t षु अन पूजा धूप विशेषको करते पुण्य प्रसंग । 1 प्रभु महिमा से आत्मा, परिचित हो हढरंग ||२|| (तर्ज-जाग जाग तू प्रभात काल भयो भ्रातरे ) करम करम से कटे मिटे सभी विकार रे । धूप धूम धार धार, प्रभु से सार रे ॥ धू०] || || प्रभु सेव आतमा, निमित्त चित्त धार रे । कर्त्ता कर्म : कारकों में, आतमा उतार रे || धू० || १ || प्रवाह से अनादि मे कर्म जाल फैल रहा दुःख महा, दे रहा कराल रे ॥ धू० ॥ २ ॥ कर विवेक नेक चेत, चेत आत्मा काल, आतमा 1 -- अचेत ! | सेत गधे खा रहे तू सोच हो सचेत रे ॥ धू० ॥ ३ ॥ वेदनीय है आघात, किन्तु घास कर्म वात । } J अधिक अधिक होय जात, पेच नहीं आत रे ॥ धू० ||४|| तीस कोडा कोडि बन्ध, सागर उत्कृष्ट धन्ध | अन्ध भाप हो रहा है, वेदनी सम्बन्ध के || धू० ॥ ५ ॥ प्रभु चरण शरण पाय, आचरण शुद्ध ठाय । हो अमाय कुप
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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