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________________ ज्ञानावरणीय कर्म निवारण पूजा (तर्ज-दा सगीजी ने पेढा भावे ) आतमा शिवफल पावे, प्रभु पद में फल धार आजादी | || आ० ॥ टेर ॥ करम संतति काल अनादि, वश चेतन सोई प्रभु पूजा शुभ कर्म कर्ममल दूर हटावे रे || आ० ॥ १ ॥ प्रभु पूजा में पाप बतावे, ज्ञानावरणी पाप उपावे । सत्ता बंध उदय ध्रुव तीनों ही हो जावे रे || आ० ॥ २ ॥ जीव विपाकी जडता धारे, अपरावर्तमान विचारे | आदिम नत्र गुण थानक तक नित बँधती जावे रे || आ० ॥ ३ ॥ ज्ञानावरण प्रकृति यह माती, देश सरव रूपे हो पाती । निज आतम गुण ज्ञान भाव को अरे मिटावे रे || आ० ॥ ४ ॥ आठ सात छह साथै बधे, ज्ञानावरणी सन अनुसधे । होते भूयहकार भयो भन गोवा सावे रे || आ० ||५|| कोडा कोडी सागर तीसा, ज्ञानाचरणी व विशेषा । तजो विराधक भाव अरे सद्गुरु समावें रे || आ० || ६ || परमातम पूना चित धारे, ज्ञानावरणी दूर निगरे | आराधक आत्म परमातम खुद हो जावे रे || आ० ॥ ७ ॥ सुख सागर भगवान हमारे, जीवन फल के हैं दाता रे । हरि कवीन्द्र घर दिव्य भाव जयनाद उचारे रे | आ० ॥ ८ ॥ ) ३८७ 3
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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