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________________ ३८६ बृहत् पूजा-संग्रह ॥ ६॥ धर नैवेद्य प्रमुपद पूजी, मांगे हो अधिकारी ॥ श्याम० ॥ परमातम ज्ञानामृत भोजन, की कर दो दातारी ॥ श्याम० ॥ ७॥ द्रव्य कारण है भाव का होता, यातें द्रव्योपचारी ॥ श्याम० ॥ आतमपद अर्थी प्रभु पूजे, हरि कवीन्द्र जयकारी ॥ श्याम० ८॥ ॥साव्यम् ॥ प्राज्याज्य निर्मित सुधामधुर प्रचारै, नैवेद्यवस्तु विविध विधिनोपढोक्य । नित्यं बुभुक्षित पद क्षतये यजामहे श्री, वीरं निजात्म परमामृत दायक तम् ॥ ६ ॥ ___मन्त्र-ॐ हीं अहं परमारमने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय ज्ञानावरणीय कर्म सम्मूलोच्छेदाय श्रीवीरजिनेंद्राय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा । ॥ अष्टम फल पूजा ॥ ॥दोहा॥ शिव सुख फलदाता प्रभु, पूजो फल धर भेट । कर्ममूल कारण कटे, पाओ सुख भर पेट ॥ १॥ फल प्रभुजी चाहें नहीं, प्रभु नाम यह त्याग । त्यागी वैरागी बने, वीतराग महाभाग ॥ २ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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