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________________ ३६३ रत्न त्रय पूजा जगको, वह धूल जानकारी । जो जानते स्वपर को, ज्ञानी सदा नमामि || आ० ॥ १ ॥ पचास्तिकाय में जीवास्तिकाय महिमा | होती है ज्ञान द्वारा, ज्ञानी सदा नमामि || आ० ॥ २ ॥ जड रूप द्रव्य सारे, हैं जीव एक चैतन | गुण ज्ञान ज्योति पूरन, ज्ञानी सदा नमामि || आ० || ३ || आनन्द धाम आतम, तम तोम से रहित हो । ज्ञान प्रकाश होते, ज्ञानी सदा नमामि || आ० || ४ || गाते हरि कवीन्द्र गुण ज्ञान आत्मा का । परमात्म भाव पूरण, ज्ञानी सदा नमामि ॥ आ० ॥ ५ ॥ ॥ दोहा ॥ ज्ञान रतन अनमोल का, जतन को मतिमान | पिन तोले वाली नही, वाणी ज्ञान प्रधान ॥१॥ ज्ञान भरी वाणी सुधा, वर्षा भगवान | पीते भविजन भाव से, अजर अमर गुणठान ||२|| (तर्ज- कोरो काजलियो । यह पाया पुण्य प्रधान शासन जैन का, नित सेनो चतुर मुजान शासन जैन का || टेर || ज्ञान रतन अनमोल है, जो है चिन्तामणि रूप || शा० ॥ १ ॥ आराधक साधक सभी, हो जाते त्रिभुवन भूष ॥ शा० || २ || अज्ञानी
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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