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________________ ३२४ बृहत् पूजा-संग्रह । हरि कवीन्द्र ऐसे, करो भवि पूजा वैसे। प्रभु पूज कर अवि, पाओ भवि पारा रे ॥ पा० ८॥ ॥दोहा॥ पोष वदी दशमी पुनित, जनमे श्री भगवान । सुख प्रकाश फैला तभी, हुआ जगत कल्यान ॥१॥ (तर्ज - चन्दा प्रभु जी से ध्यान रे० ) आज आनन्द अपार रे, प्रभु जन्म महोत्सव । जन्म महोत्सव, हरे दुख भव दव ॥ आ० ॥टेर ॥ गर्भवती सती आमामाता, पूर्ण दोहद थी, थी सुख साता । पूर्ण समय जय कार रे, प्रभु जन्म महोत्सव ॥ आ० ॥१॥ छप्पन दिग कुमरी मिल आवे, सुती करम सुख साज सजावे। उत्सव विविध प्रकार रे, प्रभु जन्म महोत्सव ॥ आ० ॥२॥ चौसठ इन्द्र अवधि ज्ञाने, प्रभु जन्मोत्सव सुरगिरि ठाने । ले जावे जगदाधार रे, प्रभु जन्न महोत्सव आ०॥३॥ तीर्थोदक जल कलश भरावें, केसर चन्दन फूल मिलावे । औषधि नैक प्रकार रे, प्रभु जन्म महोत्सव ॥ आ० ॥ ४ ॥ सुरपति सुरगिरि से प्रभु लाते, माताजी को शीश नवाते। होत उदय दिनकार रे, प्रभु जन्म महोत्सव ॥ आ० ॥५॥ अश्वसेन राजा कर पाते, दश दिन उत्सव ठाठ रचाते । घर
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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