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________________ श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा ३०१ आतम लक्ष्मी दीक्षा पैंतीस नृप समेत ॥ प्रभु० ॥ ४ ॥ प्रभु गण ईशा, चक्रायुध आदि छै तीसा । वल्लभ हर्प है शिवसकेन || प्रभु० ॥ ५ ॥ ॥ दोहा ॥ लाख वरस जिन आयुके, व्रत मंडलिक कुमार | चक्रवर्त्ति मिल चारके, प्रति पणवीस १ हजार ॥१॥ एक वर्ष वर्ष छद्मस्थका, शेप केवली धार । भूमडलमें विचरते, हुआ प्रभु परिवार ||२|| साधु चासठ र सहस हैं, साधवी कमरे शत चार । श्रावक दो लख ऊपरे, नानो नपति४ हजार ||३|| सहस तिरानवे श्राविका, तीन लास सह जान | चार कल्याणक गजपुरि, समेतशिसर निखान ॥४॥ अन्त समय जानी प्रभु, आये शिखर गिरींद | नवसौ साधु सगमे अनशन कियो जिनन्द ||५|| ( तर्ज - न छेरो गारी दूंगीरे भरने दो मोहे नीर ) शांति प्रभु अनशन कीनोरे बलिहारी धीर वीर । शांति० ॥ अंचली ॥ अनशन कीनो प्रभु जानी, सुर सुरपति १ - २५०००, २ ६२०००, ३६१६००, ४-२६००००, ५-३६३००० १
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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