SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हत् पूजा. २७८ वृहत् पूजा-संग्रह ॥ दोहा ।। पुंडरकिणी नगरी भली, राजा घनरथ सार । प्रियमति और मनोरमा, दो तस सुन्दर नार ॥१॥ ग्रैवेयक पूरण करी, वज्रायुध निज आय१ । प्रियमति उदरे आवियो, मेघ सुपन दरसाय ॥२॥ सहस्रायुध रथ स्वप्नसे, मनोरमा उर धार । समये सुत दो ऊपने, आनंद हर्ष अपार ॥३॥ नाम मेघरथ ठानियो, प्रियमति सुत अभिराम । मनोरमा सुत धारियो, दृढ़रथ सुन्दर नाम ॥४॥ यौवन वय शादी२ हुइ, नंदिषेण घनसेन३ । तनय मेघरथ जानिये, दृढ़रथ सुत रथसेन ॥५॥ (तर्ज-कुबजाने जादू डारा) धन्य धनरथ नृप अवतारा, जिने सार लिया संसारा ॥ धन्य० ॥ अं० || एक दिन पुत्रप्रपुत्र सहित नप, अंतेउर परिवारा । नाना विनोद करत उसवेरा, गणिका वचन उचारा ॥ धन्य० ॥१॥ देव मेरा यह कुर्कुट जिसके, कुर्कुटसे जाय हारा। लाख सुनैये देऊ उसको, सच्चा प्रण है म्हारा ॥ धन्य० ॥ २ ॥ राणी मनोरमाने मंगवाया, १ आयु । २ शादी-विवाह-लान । ३ मेघसेन ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy