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________________ २७० धृहत् पूजा-संग्रह तुम०॥१॥ न्याय नीतिसे राज्प चलाते अत्याचार निवार । पर उपकार करनमें सूरे धन धन तुम अवतार ॥ तुम० ॥ २ ॥ विरता माता कुखसे उपनी सुमति कन्या सार । बलभदर जस तात कहावे बार बार बलिहार ।। तुम० ॥ ३ ॥ धर्म पसाय स्वयंवर मंडप बोध दियो सुरी आय । मात पिता परिवारकी आज्ञा लेकर संयम पाय ॥ तुम० ॥ ४ ॥ कर्म खपाई मोक्ष सधाई सुमति हुई भव पार | अनंतवीर्य वियोगसे मनमें अपराजित दुख धार ॥ तुम० ॥ ५ ॥ धिक संसार असार विचारी नप संग सोल हजार । जयंधर गणधर चरनोंमें त्याग दियो संसार ॥ तुम० ॥ ६॥ आतम लक्ष्मी कारण संयम पारी अनशन धार। द्वादश स्वर्ग पति सुरवल्लभ उपनो हर्प अपार ॥ तुम्० ॥ ७॥ ॥दोहा ।। नरकायु पूरण करी, दो चालीस हजार । अनंतवीर्य वैताठ्यकी, उत्तर श्रेणि सार ॥ १ ॥ नगर गगनवल्लभ पति, मेघवाहन भूपार । मेघमालिनी कूखसे, मेघनाद अवतार ॥ २ ॥ १ सुरी-देवो जो समति कन्या की पूर्व जन्म की बहिन थी।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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