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________________ - श्री शातिनाथ पंचकल्याणक पूजा (लावणी-चाल सग नर परनारी हरना) करमकी वात जगत भारी, किये करम फल पाय शुभाशुभ, जग सब नरनारी ॥ क० ॥ अचली ॥ करम फल निज निजका पाना, मीठा हो वा कटक बिना किये नहीं फल नाना। निमित्त मातर परको जानो, भोजन किया खराब चुरा उडकार भी तस मानो। थान सब रीति यह ठानो । नारद दामी दो बने, दमितारिके निमित्त । होणहार ही होत है, होणी आवे चित्त। मांगता दासी दमितारि ॥ किये करम० ॥१॥ इतने दासी मांग कीनी, भेजेंगे कर सोच चलो आज्ञा विष्णु दीनी । सलाह कीनी दोनों भाई, कीजे विद्या सिद्ध प्रथम पीछे सब चतुराई । करी सिद्ध विद्या अपनाई । दूत दुबारा आगया, दीनो तस समझाय । विद्यावल दासी बने, राम कृष्ण दो भाय । गये सग द्त सबरदारी ॥ किये करम० ॥ २ ॥ देखके दमिवारि मनमें, सोचे रूप अपूर्व अहो इन दोनोंके तनमें । करण नाटक आज्ञा दीनी, दोनोने कर रग अपूरव समा मूढ कीनी । धार ससार सार लीनी। सुश हो दमितारि कहे, सुनो हमारी वात। सिखलाओ नाटक कला, पुत्री मुझ दिनरात । कनकधी होवे हुशियारी ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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