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________________ [५] फिर पानी व दूध वस्त्र से छानकर पहले एक कलश मे दूध ( पंचामृत ) और दूसरे मे जल भरकर फिर धूप देकर प्रतिमाजी का प्रक्षाल कर। ससक्ची से जहाँतहाँ केशर आदि लगी हो उसे हल्के हाथ से उतार कर दूध या पंचामृत से, बाद में पानी से प्रक्षाल करें। यदि गरमी की ऋतु हो तो जल में गुलाव, केवडा जल डालकर प्रतिमाजी को स्नान करावें। पास में और भी कोई भाई हो तो उन्हें भी ( बहनों को भी ) प्रभु पूजा मे लाभ लेने का निवेदन करें। प्रक्षाल के बाद, एक-एक करके तीन अंगलहणों से प्रतिमाजी को पोंछकर साफ करें। ध्यान रस कि कहीं भी जरा जल्-बिन्दु भी प्रतिमाजी पर अवशेष रहना न चाहिए। तीन अंगहणा करके पुन धूप देकर प्रभु की चन्दन केशर से इस प्रकार पूजन करें। पूजन सर्व अंगों से पहले दाहिनी तरफ, फिर वाई तरफ करें। भगवान के नव अंगों की पूजा होती है। उसके लिये एक-एक श्लोक (मंत्र ) पढ़ें और प्रभु अंग भेटें। प्रभु की प्रतिमाजी के नव अंगों का क्रमवार वर्णन १ प्रभु के दोनों चरण। २ प्रभु के जानु (गोडों) । ३ प्रभु के कर (हाथों की कलाइयाँ)। ४ प्रभु के सबों पर ( चारों अंगों पर प्रथम दाहिने फिर यायें अग पर) ५ प्रभु के मस्तक पर । ६ प्रभु के भाल ( ललाट पर)। प्रभु के कठ पर । ८ प्रभु के पर दिय
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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