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________________ [४] वह शास्त्र पढ़कर ही सब विधि जाने। अतएव, संक्षेप में यहाँ जिन पूजन विधि लिखते हैं। ताकि हरएक साधारण व्यक्ति भी समझकर कर सके। पूजन करने वालों को स्लान आदि करके अपने शरीर की शुद्धि करनी चाहिये । आजकल प्रायः कई व्यक्ति पर में ही स्नान करके आते हैं। एवं मन्दिरजी में आकर हाथ-पाव धो-पोंछकर पहनने के कपड़े बदल कर पूजा में चले जाते हैं। किन्तु घर से कपड़े पहन कर आना एवं रास्तों में कितनों ( अस्पश्य ) का स्पर्श हो जाता है । यह उचित नहीं है एक दूसरी बात यह है कि उसे सब लोग तो नहीं जानते कि ये घर से स्नान करके आये हैं ? अतः उनका अनुकरण (ओ अज्ञानी एवं अजान हैं ) करके दूसरे व्यक्ति भी केवल हाथ-पाँच धोकर पूजा में प्रवेश हो जाते हैं । इसमें कितनी आसातना होती है यह अति विचारणीय है। इस प्रकार शुद्ध हो प्रत्येक व्यक्ति पूजक रूप में यथावत बनकर मूल गॅभारे में जावें । तीन नवकार मंत्र स्मरण कर सर्व-धातु की अरिहंत प्रतिमा सिद्धचक्र गट्टाजी स्नात्र के लिये लावे। प्रभु प्रतिमा का देखते ही वन्दना करके समस्त पूजा वस्तु को धूप से धूपित करके सर्वप्रथम प्रभु को धूप से धूपित करना चाहिये। तत्पश्चात् आभूपगों को उतारकर यथास्थान रखें। फिर जीवदया का पूरा पूरा ध्यान रखते हुए कि कहीं कोई चींटी-मकोड़ी रोशनी के जन्तु आदि न हों! सावधानी से देखकर प्रतिमाजी के मोरपीछी का व्यवहार करें। अर्थात् पहले का चढ़ा हुआ पूजा-द्रव्य मोरपीछी से उतारें।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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