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बारह व्रत पूजा
॥कान्य ॥ ___ जयाम्रादिफलवजैः ससुरसैं गधादिभिमिश्रितै, नूनं द्रन्यरुनुम्द वैश्च विधिना कुर्यात्प्रभोरर्चन ॥* सोभक्त्यास्मनवश्रजोत्कर निरा सकृत्य सद्य लभोच्छमस्वर्गतरोरकसुसफलागार पर निर्मल ॥ १ ॥ ॐ ही श्रीपर० अतिथिसविभाग व्रतशोधनाय फल यजामहे स्वाहा ।
ॐ भक्त स प्रभु पूजनक निरता भूयोपि भूयोलमे।