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________________ शुद्ध जल से धो-पोंछकर पूजक अपने ललाट पर मेरु आकृति का तिलक करे तथा चारों अंगों में करे। फिर प्रक्षाल के लिये शुद्ध जल का घड़ा तैयार रखे। दृध-दही-घृत-मिश्री और केसर, इनके मिश्रण से पंचामृत का कलश तैयार करे। रकेवी में फूल या लौंग व अक्षत स्वच्छ जल धोकर रखे। भगवान के डाबी वाजु धूपदानी में धूप और जिवणी वाजु घृत दीपक तैयार करे। नैवेद्य पेड़ा लड्डू या मिश्री, फलरकेवी में रखे। मोली-काँच-पंखाखसकूची तीन अंगलहणे तथा आरती, मंगल, दीपक, चामर, घण्टा ( घड़ियाल ) आदि भी तैयार रखे । ____ पहले स्नानशुद्धि के बाद, पूजन के वस्त्र यानी धोती पहन कर दुपट्टे या चद्दर आदि का उत्तरासन लगा के, मुंह एवं नाक अष्टपट्ट मुखकोश वॉधकर चन्दन केशर घोटकर तैयार कर ले। सुगन्धि के लिये केशर में थोड़ा वरास डाल। गरमी हो तो थोड़ा गुलावजल भी डालं। फिर मौली अपने दाहिने हाथ में बाँधे । दाहिनी हथेली में केशर का साथिया करे। इतना ध्यान अवश्य रहे कि अपने ललाट व अंगों पर तथा हथेली में साथिया करने के लिये चन्दन-केशर अलग कटोरी में होना चाहिये। प्रभु पूजा की चन्दन-केशर की कटोरी अलग होनी चाहिये। प्रभु पूजा की चन्दन-केशर की कटोरी में से हाथ के साथिया भूल के भी न करे। तिलक करने के बाद अपने हाथों को शुद्ध जल से धोकर पोछ लेना चाहिये । हाथ आदि भी अन्य पात्र में धोना, मंदिरजी में कीचड़ कभी नहीं करना चाहिये। फिर मन्दिरजी में या जहाँ
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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