SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारह व्रत पूजा ॥ राग धन्याश्री ॥ (तर्ज- कबहु मे नीके नाथ न घ्यायो ) प्रभुजीकी फूले पूजन सारो, प्र० ॥ टेर ॥ श्रीजिनजी के चरण कमलमें, अलि समता गुण धारो ॥ प्र० || १ | चपक कुंद गुलाब केवडा, पारधि नाग कलारो । जासु दमण वासति मोगरा, पाडल लाल मंदारो ॥ प्र० ॥ २ ॥ इम नानाविध कुसुम घटाकर, भाव विमलजल झारी । तो लहिये भविजन ध्रुव करिने, अचिर थकी भव पारो ॥ ० ॥ ३ ॥ व्रतधर फूल कलाप रुचिर ग्रहि, पूजत जे जग तारो || कपूर कहत जिन चरण शरण लहि, करम सकल दल मारो ॥ प्र० ॥ ४ ॥ २.१७ आ ॥ काव्य ॥ गंधामलादि गुण लक्षणलक्षितवें पुष्पोत्करैर सिलगुचित चंचरीकः । ससेवयेद्विविध जाति समुद्भवैयौं । जैनेश्वरं व्रजतिसोद्यचिराच्छिवना ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री पर० दिशिपरिमाण व्रत ग्रहणाय पुष्पं यजामहे स्वाहा । - ॥ अष्टम भोगोपभोग विरमण व्रत अष्टमंगल पजा ॥ ॥ दोहा ॥ 7 जगनायक पद कमलमें, धरिये करि मन भृङ्ग । भोग अने उपभोगना, ए सहु व्रत गिरिशृह्न ||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy