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________________ २१६ वृहत् पूजा-संग्रह || सप्तम दिशिपरिमाणव्रत पुष्प पूजा ॥ . . . दोहा।। . . . . छट्टो व्रत दिशमानको, गमनागमन निवार । अकुशलता सवि उपसमे, श्रेय संपजे सार ।। ॥राग गयो ।। (तर्ज-सिद्धाचल मंडग स्वामीरे) श्रीशिवसुख संपति परिये रे, भव भय दुख वारण करिये रे। कर दिशिपरिमाण जे चरिये ।। रसीला, भाव विमल दिल धरिये रे, वाला धरिये तो समरस भरिये ॥ र० भा० ॥१॥ अध ऊर्ध्व ने तिरछि वखाणो रे, दिशि विदिशिने तेम प्रमाणो रे, ए छे संकट जलधिनो राणो ॥ २० भा० ॥२॥ ऐमां गमनागमन निवारो रे, ओ छे कुमति दुरति भरतारो रे, इक चक्री लह्यो दुख भारो ॥ २० भा० ॥३॥ ए व्रत शिवसाधन चंडो रे, तुमे भक्जिन एह न खण्डो रे, कहे कुशल कला नित मंडो ॥र० भो० ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ भवियण पूजा सातमी, कीजे भक्ति विशाल । ससुरभि नाना जातना, विमल कुसुम भरथाल ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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