SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ वृहत् पूजा संग्रह नगर पथि शबर सरिखो, अरति व्यापन घोलरे ॥ वाल्हा अर० सु० ॥ २ ॥ निपट कूट कलाप करिने, पर गुप्त मत खोल रे । ऋण विधौ धन धान्य निकरे, कपट कूट न तोल रे ॥ वाल्हा कप० सु० ॥ ३ ॥ कूट लेख कुशाख भरिने, रचय मा डमडोल रे। अन्य शिरसि कलंक धरिने, चरित छांनु न बोल रे। वाल्हा चरि० सु० ॥४॥ वसुनरेसर वृथा रचिने, लह्यो कुगति कचोल रे। द्वितीय व्रत रस राग भाखी, कुशलसार विमोल रे ॥ वाल्हा कु० सु० ॥५॥ ॥दोहा॥ जगदाधार जिनेन्द्रने, पूजो वास रसेण । शिव वनिता वस कीजिये, पूजा त्रयतमएण ॥ ॥ राग गरयो॥ (तर्ज-भवि चतुरसुजाण परनारीखें, प्रीतड़ी कबहु न कीजिये ) ___ भवि भाव घरी भव सागर निसतारक जिन पति सेवीये ॥ भवि० ॥ टेर॥ बावनचन्दन खंडन करिये, तेहमा वलि कुङ्कम रस भरिये, मृगमद परिमलता अनुसरिये ॥ भ० ॥ १॥ कंकोल सुवासित वलि कीजे, तिम विविध
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy