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________________ बारह व्रत पूजा २०७ धारो, हिंसा कुदोष वारो, प्रभु नाम ना विसारो || हो ता० ॥४॥ तज पाप भार फंदा, शिवशंकलाप कदा, 1 साधे कपूरचंदा || हो ता० ॥ ५ ॥ ॥ काव्य ॥ अमल कुकुम केशर मिश्रितैश्चति यो घनसार सुचन्दनैः । जिनपतेर्युग पादसमर्चनं, स हरते भवदाघम सवरम् ॥ ॐ ह्रीं श्रीपरमा० प्राणातिपात विरमणत्रत ग्रहणाय चदनं यजामहे स्वाहा | तृतीय मृषावादविरमण व्रत वासक्षेप पूजा ॥ दोहा ॥ मृपात्याग व्रत दूसरो, कुमति दुरवि हरतार | 4 भविजन भावे आदरो, शिवतरु फल दातार ॥ वसन्त ॥ w " ॥ राग वसन्त (तर्ज- सब अरति मथन मुदार धूपं ) सुण भविक नर धर ' दुतियं व्रत मन, मृषावाद न बोल रे, वाल्दा मृषा० ॥ टेर ॥ मृपावाद कुवाद शेखर, कुजसवाद न ढोल रे, 'वाल्हा कुज० सु० ॥ १ ॥ सकल शिनशख धामधरवि, ढकण राह निटोल रे । शिवपुर f
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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