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________________ १६६ पि-मण्डल-पूजा || राग.कहरवो ॥ (तर्ज-पान तेरा विधुआ वाजे) पास जिणंदा प्रभु मेरे मन वसीया ॥ पा० ॥ मेरे मन० ॥ शिवकमलानन कमल विमल कल, तर मकरद पान अति रसिया ॥ पास जि० ॥१॥ वामानन्दन मोहनी मूरत, सकल लोक जनमन किय वसीया ॥ पास जि० ॥ परम ज्योति मुखचन्द विलोकित । सुरनर निकर चकोर हरसिया ।। चकोर ह० ॥ पास जि० ॥२॥ अंजनगिरि तनु दुति जिन जलधर, देशना अमृतधार वरसिया ॥ धार० ॥ पास जि० ॥३॥ पीय करि भवि चिरकाल तिरसिया । मुगति युवति तनु तुरत फरसिया ॥ पास जि० ॥ कुमुद सुपद शिवचन्द्र जिणदनी । पारीजाउ मन मेरो अतिहि उलसिया ॥ पास जि० ॥ ४ ॥ ॥कान्य ॥ सलिल' ॐ हीं श्री प० श्रीमत्यार्थ जिने० ॥ ॥ चतुर्विंशति श्रीवीर जिन पूजा ॥ ॥दोहा॥ वर हल्वाकु कुल केतु सम, त्रिसलोदर अवतार ।' ए प्रभुनी नित कीजिये, विविध भक्ति सुसकार ।।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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