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________________ १६८ वृहत् पूजा-संग्रह ॥ राग रामगिरी॥ (तर्ज-गान लूहे जिन मन रंगसु रे देवा) नेमि जिणंद उर धारिये रे ।। बाला| विषय : कषाय निवारिये रे ॥ वा० ॥ वारिये हां रे वाला वारिये । ए जिनने न विसारिये रे ॥ १ ॥ जलधर जिम प्रभु गरजता रे ॥ वा० ॥ देशना अमृत बरसता रे ॥ वा० ॥ देसना० ॥ वरसता हां रे वाला वरसता, भविक मोर सुनि उलसता रे ॥ २ ॥ समवसरण गिरि पर रखा रे॥ वा० ॥ भामंडल चपला वह्यारे ॥ वाला चपला वह्या ॥ हां रे च० ॥ सुरनर चातक उमद्या रे॥३॥ बोधिनीज उपजावियो रे ।। वा० ॥ भवि उरक्षेत्र वधावियो हां रे ॥ वा० वधावियो ॥ भविक मुगति फल पापियो रे॥४॥ ॥ कान्य ।। सलिल चं० ॐ हीं श्री प० श्रीमत्नेमि जिने । ॥ त्रयविंशति श्रीपार्श्व जिन पूजा ॥ ॥दोहा॥ अश्वसेन नंदन सदा, वामोदर खनि हीर। लोक शिखर शोभे प्रभु, विजित कर्म बड़वोर ।।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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