SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंच ज्ञान-पूजा १६६ मृगमद चंदन वाससु, जो पूजे श्रुतअंग । अनुभव शुद्ध प्रगटे सही, पावे सुख अभंग ॥ ॥ ढाल ॥ (तर्ज-नामिजीके नंदाजीसे लाग्या मेरा नेहरा) श्रुतजानकी पूजाकर सीसो भवि सेहरा ॥ श्रु० ॥ विनय सहित गुरु वदन करके, लुल लुल पाय नमें गुरुदेवरा ॥श्रु०॥ तीन तीस आसातन टाली, भगत करे भवि गुणगण गेहरा ॥१०॥१॥ श्रीगुरु ज्ञान असंडित वरसे, ज्यू पावस मृतु बरसे मेहरा ॥ध्रु०॥ दश विध विनय करे श्रुत गुरुको, सेवे ज्यु अलि फूलने नेहरा ॥ १० ॥ २ ॥ गुण मणि रयण भयो श्रुतसागर, देस दरश हरखावे मेरा जियरा ॥ १० ॥ पूछन पायन वलि पलि करिये, सीमे पंछित ज्यु मुनि सेवरा ॥ १० ॥३॥ गुरु भगती जैसी गणघरकी, वीर कहे मुण गौतम सेहग ॥ श्रु० ॥ ऐसे गुरु भक्तिसे सीखो, ए श्रुतनान सकल मुख देहरा ॥ श्रु० ॥ ॥४॥ गुरु पिन और न को उपगारी, श्रीगुरुदेव नित गुणमणि जेहग ॥०॥ ऐसे गुरुकी कोरत फरके, मुमति घरो दिलमे गुण गेहरा ॥५०॥५॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy