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________________ पंचकल्याणक पूजा १५५ आतम पुण्ये भरिये || करी अढाई महोत्सव आवत, सर सुर मिल निज परिये (जि० ॥४॥ ॐ ही श्रीप० अ० ज० जन्म कल्याणके अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ २॥ ॥ तृतीय दीक्षा कल्याणक पूजा ॥ ॥दोहा॥ सुरकन उत्सव अति अधिक, भये अनंतर प्रात । माव पिता उत्सव करे, निज कुल क्रम विख्यात ॥ पार नहीं धनको जहाँ, अगणिव भरे भंडार । दान मनोपंछित दिये, दयावंत दातार ॥ ॥ राग रामगिरी॥ (तर्ज-गान लहे.) जिन जन्म महोत्सव रंगसुरे, भये प्रात करत उछरंगसुंरे। हां रे देवा रगसु । नृपउत्सव करे अति घणो ॥ १ ॥ पुरजनम कुलकम करे रे देवा, जगजस कीरत विस्तरे । वि० घर घर उत्सब रंग में ||२|| मुखधु मिल सुरसगरे । सु० ॥ करे नाटक नवनव रंगमुं रे ॥ रंग। हारे बाललीला जिन संगमें ॥ ३ ॥ रूपातिशय शोभता रे ।। दे० ॥ इन्द्रादिक मन मोहता रे वाला || मो० ॥ विद्याप्रभु विस्मयता ॥४॥ परमप्रमोद प्रवीणवा रे देवा,
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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