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________________ पंचकल्याणक-पूजा १४६ सूचित गुण जेहनां, अवतरे माता उदरन में || आ० ॥१॥ नृपति सदन बहु सुपन शास्त्रविद, अर्थ विचार करि निज मनमें । पुत्र रतन फल वदत नृपति कुल, परम कल्याण होत जननमे ॥मा०॥२॥ प्रफुल्लित हरस भरत हिय उलसत, जिन जननी तात सुनी तनमें। दिन दिन वढत प्रवर धन जन मन, अधिक उत्साह घर घरनमें |आ०॥३॥ स्वर्ण रजत मणि माणक मोतिय, शंख प्रवाल शिल वरसन में । धनद धनदसुर इन्द्र हुकमते, भरत भंडार नृपसदनमें । आ० ॥४॥ ताल कसाल मध वीण बजावत, गारत गीत तान तननमें । दुन्दुमि मुरज मृदंग घन गरजत, गरज गरज मार्नु जैसे धनमें |आ०|||मुर नर लोक माहे अधिक उत्साह वाह, निशदिन होत जन जनपदनमें। इन्द्र इन्द्राणी नृप दोहद पूरत, मनोरथ होत जो जो मातु मनमें ॥ आ० ॥ ६॥ परम कल्याण शुभ योग सयोग भयो, शुभ घरि शुभ ग्रह शुभ दिनमें । घरण सके न ताहि कवि अवसरको, आनंद छायो तीन भुवनमें ॥ आ० ॥ ७॥ ॐ ही श्री परमात्मनेऽनंतानंतज्ञान शक्तये जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय च्यवन कल्याणक अष्ट
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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