SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ वृहत् पूजा-संग्रह राग काफी, घाटो चैति (तर्ज-जिनजी हमें कछु दीज) जिनजी भजो भवि प्यारा, याते आनंद अधिक अपारा ॥ जि० ॥१॥ सुख सेज सूती जिन माता, देखे सुपना मन भाता। चित्त हरखित हुय तिण वारा ॥ जि. ॥२॥ गज वृषभ सिंह श्रीदेवी, वर पुष्प चन्द्र रवि सेवी । ध्वज कुम्भ पदमसर सारा ॥ जि० ॥ ३॥ वर क्षीरसमुद्र विमानं, रयणोच्चय मेरु समानं, निधूम पावक सुखकारा ॥ जि० ॥ ४ ॥ शिव धान्य मंगल श्रियकारी, जाणी अर्थ हृदय क्रमधारी, शुभसूचक पुण्य संमारा ॥ जि० ॥ ५ ॥ सुन्दर वर सखियन संगे, करिधर्म नागरिका रंगे, निशि शेष गई तिणवारा ।। जि० ॥ ६॥ ए भणी दो पुष्पमाला चढ़ाइये। ॥दोहा॥ परम पुरुष परमातमा, भावी भगवन भास । प्रवचन प्रगट करण प्रभु, पुण्य तणे सुप्रकाश । ॥ राग सारंग ॥ (तर्ज-पूजा सतर प्रकारी) आज आनंद वधाई, भई त्रिभवनमें । चौदह सपन
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy