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________________ वीसस्थानक पूजा १०७ आचारिज४ गुण गावो । स्थविर‍ पचम पद पुनI रुवझाया तपसि७ नाण८ दसह मन भाया ॥१॥ ॥ ऊलालो ॥ मनभाय विनया१० वश्यका ११ मल, शील१२ किरिया १३ जाणिये । तप१४ विविध उत्तम, पात्र १५ वेया, चच्च१६ समाधि१७ वखाणिये । हितकर अपूव नाग संग्रह १८, धरो मन सुजगोश ए| श्रुत भक्ति १६ पुनि तीरथप्रभावन२० एह थानक वीशफ ॥ २ ॥ ॥ ढाल || एह थानक चीश जग जयकारा, जपता लद्दीये जिनपद सारा । करम निकदे विसवा वीशे, भाख्या जगतारक जगदीशे ॥ ३ ॥ ॥ ऊलालो ॥ जगदीश प्रथम, जिणंद जगगुरु, चरम जिनवरजी मुदा । भन तीसरे पद, सकल सेवी, लही जिनपति सपदा ॥ बानीश जिनपर सकल सुखकर, इन्द्र जसु गुण गाइये | हग दोय त्रिण, महु पद जपीने, तीर्थपति पद पाइये ॥ ४ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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