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________________ वृहत् पूजा-संग्रह || गाहा ॥ सुरमद्दल कंसालो, महुरय मद्दल सुवज्जए पणवो । सुरनारि नंदि तूरो, पभणेइ तूं नंद जिणनाह ।। ॥ राग मधुमाधवी ॥ तूं नंदिआनंदि बोलत नंदी, चरण कमल जसु जगत्रय वंदी । ज्ञान निर्मल बावन मुख वेदी, तिवलि बोले रंग अतिही आनंदी ॥ तूं० ॥ १ ॥ भेरो गयण वाजंती, कुमति त्याजंती ; प्रभु भक्ति पसाये अधिक गाजंती। सेवे जैन जयणावंती, जैनशासन, जयवंत नंदती । उदय संघ परिपास्य वदन्ती ॥ तूं० ॥२॥ सेवि भविक मधु माधनफेरी, भव नी फेरी नप्पभणंती, कहे साधु सतरमी पूज वाजिन सत्र, मंगल मधुर धुनिकर कहंतो ॥ तूं ॥३॥ || कलश ॥ । राग धनाश्री॥ भवि तु भण गुण जिनके सब दिन, तेज तरणि मुख राजै । कवित शतक आठ थुणत शक्रस्तव, थुय थुय रंगै हम छाजै ।। भ० ॥ १ ॥ अण हिलपुर शांतिशिव सुखदाई,
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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