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________________ वृहत् पूजा संग्रह || राग रामगिरी ।। मेरो मन मोह्यो माईरी, फूलवर आणंद मिले। असत उसत दाम वधरी मनोहर, देखत तयही सब दुरित खिलै ॥ फू० ॥ १ ॥ कुसुम मंडप थंभगुच्छ चन्द्रोदय, कोरणि चारु विनाण सके । इग्यारसी पूज भणीहे रामगिरी विबुध विमाण जैसे तिपुरि भजे ॥ फ० ॥ २ ॥ ॥ द्वादश पुष्पवर्षा पूजा ॥ ॥ दोहा मल्हार रागमां ॥ वरपे चास्मी पूजमें, कुसुम बादलिया फूल । हरण ताप दुख लोकको, जानु समा बहु मूल ॥ (राग भीममल्हार गुढमिश्र, देशी कड़खानी) मेघ वरस भरी, पुष्फ वादल करी, जानु परिमाण करि कुसुम पगरं । पंच वरणे बन्यो, विकच अनुक्रम चण्यो, अधोवृते नहीं पीड पसरं ॥ मे० ॥१॥ वास महके मिलै, भमर भमरी मिले, सरस रसरंग तिण दुख निवारी । जिनप आगे करै, सुरप जिम सुख वरे, वारमी पूज तिण पर अगारी ॥ मे० ॥२॥ .
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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