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________________ मतरहभेदी-पूजा ॥ राग केदारो॥ प्रभु शिर सोहे, मुकुट मणि रयणे जड्यो । अंगद बांह तिलक भालस्थल, येहु नीको कोन घड्यो ॥प्र०॥१॥ श्रण कुण्डल शशि तरणि मडल जीपे, सुरतरुसम अलकर्यो । दुसके दार चमर सिंहासण, छत्र शिर उचरि धरयो, अलकृत उचित वस्यो । प्र० ॥२॥ ॥ एकादश फूलपर पूजा ॥ ॥दोहा ॥ फूलघरो अति शोभतो, फूदे लहके फूल । महकै परिमल फलमहा, ग्यारमी पूज अमूल ।। ॥राग रामगिरी कौतकिया । कोज अकोल रायवेलि नव मालिका, कुन्द मचकुन्द वर विचिकलू हारे ॥ अइ० वि० ए॥ तिलक दमणक दलं मोगरा परिमल, कोमला पारिध पाडल हां रे अ. पा० ए॥१॥ प्रमुख कुसुमे रच त्रिभुवन रुच, कुसुम गेहे विच वोरण, हा रे अ० तो ए ॥ गुच्छ चन्द्रोदय भरका उन्नय, जालिका गोस चित चोरणू हा रे अ. चो० ए॥२॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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