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________________ ७० अष्टावक्र गीता भा० टी० स० अन्वयः। पदच्छेदः । न, अहम्, देहः, न, मे, देहः, जीवः, न, अहम्, अहम्, हि, चित्, अयम्, एव, हि, मे, बन्धः, आसीत्, या, जीविते, स्पृहा ॥ शब्दार्थ । | अन्वयः। शब्दार्थ। अहम् मैं हि-निश्चय करके देहः-शरीर चित्-चैतन्य-रूप हूँ न नहीं हूँ मे मेरा मे मेरा देहा शरीर अयम् एव यही नम्नहीं है बन्धाबँधा था अहम् =मैं या-जो जीव-जीव जीविते-जीने में न-नहीं हूँ स्पृहा इच्छा अहम्=मैं आसीत्-थी भावार्थ। प्रश्न-शरीर में अहंता और ममता अवश्य करनी होगी ? क्योंकि विना अहंता और ममता के व्यवहार की सिद्धि नहीं होती है ? उत्तर-जनकजी कहते हैं कि मैं देह नहीं हूँ, क्योंकि देह जड़ है, मैं चेतन हूँ, और मेरा देह भी नहीं है, क्योंकि मैं असंग हूँ, मैं जीव अहंकारी भी नहीं हूँ, क्योंकि अहंकार का कतत्व धर्म है और नेरा अकर्तुत्व धर्म है। प्रश्न--फिर तुम कौन हो ?
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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