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________________ अठारहवाँ प्रकरण । ३७५ जनाकोणम्- देश के सम्मुख अन्वयः। शब्दार्थ । ) अन्वयः। शब्दार्थ। उपशान्तधीः शान्त बुद्धिवाला पुरुष अरण्यम् वन के सम्मुख न-न धावति=दौड़ता है [ मनुष्यों से व्याप्त परन्तु-परन्तु यत्र तत्र जहाँ है नहीं च-और समः एव=समभाव से ही अवतिष्ठते स्थित रहता है ।। भावार्थ । हे शिष्य ! जो जीवन्मुक्त शान्तचित्त है, वह जनों द्वारा भरे पुरे देश को भी नहीं दौड़ता है, क्योंकि उसके साथ उसका राग नहीं, और वन की ओर भी नहीं दौड़ता है, क्योंकि मनुष्यों के साथ उसका द्वेष नहीं है, जहाँ तहाँ वन में अथवा नगर में वह स्वस्थचित्त होकर एकरस ज्यों का त्यों ही रहता है ।। १०० ।। इति श्रीअष्टावक्रगीताभाषाटीकायां शान्तिशतकं नामाष्टा दशप्रकरणं समाप्तम् ।।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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