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________________ अठारहवाँ प्रकरण । ३४९ निमर्म: ममता-रहित । निष्कामः कामना-रहित निरहङ्कारः अहंकार-रहित । शोभते शोभायमान होता है । भावार्थ । आत्म-ज्ञान पर्यन्त ही है संसार जिसमें, अर्थात् आत्मज्ञान-रूप अन्तवाले संसार में माया सबल चेतन ही विवर्तरूप कल्पित जगदाकार हो भासता है। ऐसे निश्चयवाले विद्वान् का शरीरादिकों में अहंकार नहीं रहता है । वह ममता से और कामना से रहित होकर विचरता है ।। ७३ ॥ मलम् । अक्षयं गतसंतापमात्मानं पश्यतो मुनेः । क्व विद्या च क्व वा विश्वं क्व देहोऽहं ममेतिवा ॥७४॥ पदच्छेदः । अक्षयम्, गतसंतापम्, आत्मानम्, पश्यतः, मुनेः, क्व, विद्या, च, क्व, वा, विश्वम्, क्व, देहः, अहम्, मम, इति, वा ॥ शब्दार्थ । | अन्वयः । शब्दार्थ। अक्षयम् अविनाशी क्व-कहाँ च और विश्वम्-विश्व है गतसंतापम् संताप-रहित वा अथवा आत्मानम्-आत्मा के क्व कहाँ पश्यतः देखनेवाले देहेः=देह है मुनेः मुनि को वा-और क्व-कहाँ क्व-कहाँ विद्या-विद्या, शास्त्र अहम् मम अहंमम भाव है ॥ च और अन्वयः।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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