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________________ पहला प्रकरण | २५ हो जाता है, और लोग अपने-अपने स्वप्नों को देखते ही रहते हैं । अतएव हे राजन् ! अब तू अज्ञान रूपी निद्रा से जाग, और अपने ज्ञान स्वरूप को प्राप्त होकर सुख पूर्वक संसार में विचर ॥१०॥ प्रश्न- जब सारा जगत् रज्जु में सर्प की तरह कल्पित है, और मिथ्या है, तब फिर बन्ध और मोक्ष पुरुष को कैसे हो सकते हैं ? मूलम् । मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धा बद्धाभिमान्यपि । किंवदन्तीय सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत् ॥ ११ ॥ पदच्छेदः । मुक्ताभिमानी, मुक्तः, हि बद्धः बद्धाभिमानी, अपि, किंवदन्ती, इह, सत्या, इयम्, या, गतिः, सा गति, भवेत् ॥ अन्वयः । शब्दार्थ | अन्वयः । शब्दार्थ | मुक्ताभिमानी = मुक्ति का अभिमान मुक्त = मुक्त है बद्धाभिमानी=बद्ध का अभिमानी बद्ध =बद्ध है हि = क्योंकि इह = इस संसार में इयमन्यह किंवदन्ती-लोक-वाद सत्या= सत्य है कि या=जैसी मतिः =मति है। सा-वैसी ही गतिः गति भवेत् होती है भावार्थ । हे जनक ! बन्ध का कारण अभिमान है— ब्राह्मणोऽहम् क्षत्रियोऽहम् वैश्योऽहम् शूद्रोऽहम् ।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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