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________________ अन्वयः । आत्मारामस्य= { अठारहवाँ प्रकरण । शब्दार्थ | आत्मा में रमण करनेवाले शीतलाच्छत-_ शीतल और अति रात्मनः निर्मल चित्तवाले धीरस्य-ज्ञानी को न=न कुत्र अपि = कहीं अन्वयः । , २९७ शब्दार्थ | जिहासा = त्याग की इच्छा अस्ति = है वा अपि =और नन्न कुत्रचित् = कहीं आशा ग्रहण की इच्छा अस्ति = है || भावार्थ । हे शिष्य ! अपने आत्मा में ही जो नित्य रमण करनेवाला है, उसका चित्त भी स्थिर रहता है । उसकी इच्छा किसी पदार्थ के ग्रहण और त्याग में नहीं रहती है और न वह अनर्थ को करता है, क्योंकि अनर्थ का हेतु उसमें बाकी नहीं रहा है ।। २३ । मूलम् । प्रकृत्या शून्यचित्तस्य कुर्वतोऽस्य यदृच्छया । प्रकृतस्येव धीरस्य न मानो नावमानता ॥ २४ ॥ पदच्छेदः । प्रकृत्या, शून्यचित्तस्य कुर्वतः अस्य, यदृच्छया, प्राकृतस्य, इव, धीरस्य, न मानः, न, अवमानता ||
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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