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________________ पहला प्रकरण । उनसे भय को प्राप्त होता है । जब निद्रा दूर हो जाती है, तब उन कल्पित सिंहादिकों का भी नाश हो जाता है, वैसे ही हे जनक ! तेरे ही अज्ञान करके यह संपूर्ण जगत् उत्पन्न हुआ है, और जब तू अपने स्वरूप को यथार्थ रूप से जान लेवेगा, तब जगत् का भी अभाव हो जावेगा। प्रश्न-हे भगवन् ! यदि आत्म-ज्ञान करके अज्ञान और अज्ञान के कार्य-रूप जगत् का नाश हो जाता, तब तो अब तक जगत् न बना रहता, क्योंकि बहुत ज्ञानवान् हो चुके हैं, उनमें से एक के ज्ञान करके कारण के सहित कार्य-रूपी जगत् का यदि नाश हो जाता, तब तो फिर अस्मदादिक सब जीव और वृक्षादिक सृष्टि भी न होती, परन्तु ऐसा तो नहीं देखते हैं, किन्तु जगत् ज्यों का त्यों ही बना है, तब फिर आप कैसे कहते हैं कि अज्ञान के नाश से जगत् का नाश हो जाता है ? उत्तर-अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे राजन् ! जैसे जल की इच्छा करके पुरुष मरु-मरीचिका के जल को देखकर उसके पास जाने का उद्योग करता है, परन्तु जब आगे उसको जल नहीं मिलता है, तब किसी के बताने से जान लेता है कि यह भ्रम करके जो जल मुझे दिखाई देता था, वह जल नहीं है । तब आकर वृक्ष के नीचे बैठ जाता है और फिर जब उधर को देखता है, तब फिर जल पहले की तरह दिखाई पड़ता है, परन्तु जल की इच्छा करके फिर उस तरफ नहीं दौड़ता है, और न दुःखी होता है, वैसे ही जिसको आत्म-ज्ञान हुआ है, और जिसने जान लिया है कि जगत् मिथ्या है और भ्रम करके प्रतीत होता है, वह फिर दुःखी
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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