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________________ विमलाशयः- वाला सत्रहवाँ प्रकरण । २६३ पदच्छेदः । सर्वत्र, दृश्यते, स्वस्थः, सर्वत्र, विमलाशयः, समस्तवासनामुक्तः, मुक्तः, सर्वत्र, राजते । अन्वयः। __शब्दार्थ । । अन्वयः। शब्दार्थ। मुक्तः जीवन्मुक्त ज्ञानी दृश्यते-दिखलाई देता है सर्वत्र-सब जगह च-और स्वस्थः शान्त हुआ सर्वत्र-सब जगह सर्वत्र-सब जगह समस्तवासना_ [ सब वासनाओं से [निर्मल अन्तःकरण मुक्तः । रहित राजते-विराजता है । ___ भावार्थ । अब ज्ञानवान् की अलौकिक दशा को दिखलाते हैं हे शिष्य ! विद्वान जीवन्मक्त सर्वत्र सुख-दुःख में स्वस्थचित्त रहता है। अज्ञानी सुख में हर्ष को और दुःख में शोक को प्राप्त होता है । ज्ञानवान् सुख-दुःख और हर्ष-शोक को बराबर जानकर, अपने आत्मानन्द में मग्न रहता है। अज्ञानी मित्र से राग और शत्रु से द्वेष करता है। ज्ञानवान् शत्रु और मित्र में समदृष्टिवाला रहता है। विद्वान् सम्पूर्ण विषय-वासनाओं से रहित होकर जीवन्मुक्त होता हुआ सम्पूर्ण अवस्थाओं में एकरस ज्यों का त्यों प्रकाशमान रहता है ॥ ११ ॥ मूलम् । पश्यञ्शृण्वन् स्पृशञ्जिघ्रनश्नन गृह्णन् वदन व्रजन् ईहितानीहितैर्मुक्त मुक्त एव महाशयः ॥ १२ ॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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