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________________ पन्द्रहवाँ प्रकरण | २२३ संपूर्ण घटपटादिक पदार्थ जड़ हैं । घटपटादिक अपने को नहीं जानते हैं और अपने से भिन्न आत्मा को भी नहीं जानते हैं इसी से वे सब जड़ हैं, हे शिष्य ! तुम ज्ञान और चैतन्य स्वरूप हो ॥ ८ ॥ मूलम् } गुणैः संवेष्टितो देहस्तिष्ठत्यायाति याति च । आत्मा न गन्ता नागन्ता किमेनमनुशोचसि ॥ १ पदच्छेदः । गुणैः संवेष्टितः, देहः तिष्ठति, आयाति याति, च, आत्मा, न, गन्ता, न, आगन्ता, किम्, एनम्, अनुशोचसि ॥ शब्दार्थ | अन्वयः । शब्दार्थ | अन्वयः । गुणैः गुणों से संवेष्टित लिपटा हुआ देहः शरीर तिष्ठति-स्थित है। + सः वह आयाति आता है। और याति=जाता है। आत्मा जीवात्मा नन्न गन्ता=जानेवाला है। नन्न आगन्ता आनेवाला है किम् = किस वास्ते एनम् = इसके निमित्त अनुशोचन्ति शोचता है || भावार्थ । हे शिष्य ! इन्द्रियादिकों करके संवेष्टित होकर यह लिंग- शरीर इस लोक में स्थित रहता है । फिर कुछ काल के बाद लोकान्तर को चला जाता है । फिर वहाँ से चला आता है । आत्मा न लोकान्तर को, न देशान्तर को जाता है, न वहाँ से आता है और स्थूल शरीर जन्म लेता और
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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